Durga Puja 2024 : दुर्गा पूजा हिंदू त्योहार है, जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा : Durga Puja क्या महत्व है

Durga Puja 2024 : दुर्गा पूजा 2024 भारत का एक प्रमुख हिंदू त्योहार है, जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, असम और भारत के अन्य हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पूजा देवी माँ दुर्गा की महिषासुर पर विजय का प्रतीक है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है।

दुर्गा पूजा 2024 की तिथियां इस प्रकार हैं:

  1. षष्ठी (9 अक्टूबर 2024): इस दिन देवी की प्रतिमा का अनावरण होता है और पूजा की शुरुआत होती है।
  2. सप्तमी (10 अक्टूबर 2024): देवी की विधिवत पूजा शुरू होती है।
  3. अष्टमी (11 अक्टूबर 2024): यह सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है, जिसमें विशेष पूजा जैसे संधि पूजा की जाती है।
  4. नवमी (12 अक्टूबर 2024): इस दिन भी विशेष पूजा और अनुष्ठान होते हैं।
  5. विजय दशमी (13 अक्टूबर 2024): यह दुर्गा पूजा का अंतिम दिन होता है, जब देवी दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है, जो उनके स्वर्ग वापस जाने का प्रतीक है।

इस दौरान भव्य पंडाल सजाए जाते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, और भक्त बड़े उत्साह से देवी की आराधना करते हैं।

 

Durga Puja 2024 Navami date

Tithi Rituals Date Weekday
Panchami Bilva Nimantran 8-Oct-2024 Tuesday
Shashthi Kalparambha 9-Oct-2024 Wednesday
Saptami Durga Saptami 10-Oct-2024 Thursday
Ashtami Durga Ashtami, Maha Navami 11-Oct-2024 Friday
Nabami Maha Navami, Vijayadashami 12-Oct-2024 Saturday
Dashami Vijayadashami 13-Oct-2024 Sunday

 

Mahalaya 2024 (October 3): The Beginning of Durga Puja Preparations

महालय दुर्गा पूजा की शुरुआत का प्रतीक है, और इसे 2024 में 3 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन को देवी दुर्गा के पृथ्वी पर आगमन के रूप में देखा जाता है, जब वे कैलाश पर्वत से धरती पर अपने भक्तों का आशीर्वाद देने आती हैं। महालय से दुर्गा पूजा की तैयारी जोरों पर शुरू हो जाती है।Durga Puja 2024

महालय के मुख्य बिन्दु पर:

  1. देवी दुर्गा का आह्वान: महालय के दिन भक्त सुबह-सुबह महिषासुर मर्दिनी का प्रसारण सुनते हैं, जिसमें देवी दुर्गा की महिमा और उनके महिषासुर पर विजय का वर्णन होता है। इस दिन देवी दुर्गा को पृथ्वी पर आने का आह्वान किया जाता है।
  2. तर्पण अनुष्ठान: महालय के दिन लोग अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण करते हैं। यह अनुष्ठान नदी या तालाब के किनारे पर किया जाता है, जहाँ लोग अपने पितरों को जल अर्पित कर श्रद्धांजलि देते हैं।
  3. दुर्गा पूजा की तैयारियाँ: महालय से दुर्गा पूजा की उल्टी गिनती शुरू हो जाती है। कलाकार देवी दुर्गा की मूर्तियों को अंतिम रूप देने में व्यस्त हो जाते हैं, और पंडालों में तैयारियाँ जोरों पर चलती हैं। इस दिन से पूरे वातावरण में उत्सव की भावना बढ़ने लगती है।

महालय के साथ ही दुर्गा पूजा की आधिकारिक शुरुआत हो जाती है, और इसके बाद षष्ठी (9 अक्टूबर 2024) से दुर्गा पूजा का मुख्य उत्सव शुरू होगा।

 

Shashthi (9 अक्टूबर 2024): देवी माँ का स्वागत

 

षष्ठी (Shashthi) दुर्गा पूजा का पहला दिन होता है, और यह देवी माँ दुर्गा के स्वागत का विशेष अवसर है। 2024 में यह दिन 9 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इस दिन से दुर्गा पूजा के विशेष अनुष्ठान और कार्यक्रम होते हैं।

इस दिन के मुख्य कार्य:

  1. देवी का स्वागत: इस दिन देवी दुर्गा की प्रतिमा का अनावरण किया जाता है और उन्हें पूजा पंडालों में स्थापित किया जाता है। यह पल इस बात का प्रतीक है कि देवी माँ अपनी संतानों से मिलने पृथ्वी पर आई हैं
  2. कलश स्थापना:
    • देवी दुर्गा की मूर्ति के साथ कलश स्थापना की जाती है, जो मंगल और शुभता का प्रतीक है। इसे पूजा स्थल पर रखा जाता है, और अनुष्ठान शुरू होते हैं।
  3. पंडाल दर्शन:
    • इस दिन से लोग विभिन्न पंडालों में देवी दुर्गा के दर्शन के लिए जाते हैं। भव्य पंडाल सजावट, रंग-बिरंगे कपड़े, और कला के विविध रूपों से देवी दुर्गा की महिमा की झाँकी दिखाई देती है।
  4. सांस्कृतिक कार्यक्रम:
    • षष्ठी से ही विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और परंपरागत नृत्य-गीत की प्रस्तुतियाँ भी दिखाई जाती हैं। यह उत्सव के माहौल को और भी खास बनाता है।

षष्ठी के दिन से दुर्गा पूजा का माहौल पूरे जोश और भक्ति के साथ शुरू हो जाता है, जो अगले चार दिनों तक चलता है, culminating in विजय दशमी पर देवी के विसर्जन के साथ समाप्त होता है।

 

Saptami (10 अक्टूबर 2024): अनुष्ठान की शुरुआत

सप्तमी (10 अक्टूबर 2024): अनुष्ठान की शुरुआत

सप्तमी का दिन दुर्गा पूजा के उत्सव में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह दिन पूजा की शुरुआत का प्रतीक है और इस दिन से अनुष्ठान पूरी धूमधाम से शुरू होता है।

प्रमुख बातें:

  1. मुख्य पूजा: सप्तमी के दिन देवी दुर्गा का आह्वान किया जाता है और विशेष पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन विशेष रूप से कोलाबा या कला भोग का आयोजन होता है, जिसमें देवी को भोग अर्पित किया जाता है।
  2. सप्तमी तिथि: इस दिन को “सप्तमी” कहते हैं, जिसका अर्थ है “सातवां दिन”। इस दिन देवी की प्रतिमा के लिए विशेष पूजा की जाती है और भक्तगण उत्साह के साथ तैयार होते हैं।
  3. नवपत्निक पूजन: सप्तमी के दिन नवपत्निक पूजन का आयोजन भी किया जाता है, जिसमें नवविवाहिताओं का पूजन किया जाता है। इसे “नवपत्निक पूजा” कहते हैं, जिसमें देवी दुर्गा की उपासना की जाती है।
  4. सांस्कृतिक कार्यक्रम: इस दिन से पंडालों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत होती है, जिसमें विभिन्न प्रकार की लोकनृत्य, संगीत और नाटक का आयोजन किया जाता है।
  5. भक्तों की भीड़: सप्तमी के दिन भक्तों की बड़ी संख्या पूजा स्थलों पर आती है। पंडालों में दर्शकों का जुटान होता है और श्रद्धालु देवी का दर्शन करने के लिए लंबी लाइनों में लगते हैं।

इस प्रकार, सप्तमी का दिन दुर्गा पूजा के महापर्व की शुरुआत को और भी खास बना देता है, जब देवी दुर्गा की आराधना और भक्तों का उत्साह अपने चरम पर होता है।

 

Ashtami (11 अक्टूबर 2024): दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन

 

अष्टमी (11 अक्टूबर 2024): दुर्गा पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन

अष्टमी, दुर्गा पूजा का सबसे प्रमुख और पवित्र दिन होता है। इस दिन देवी दुर्गा की आराधना को विशेष महत्व दिया जाता है और विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।

प्रमुख बातें:

  1. संधि पूजा: अष्टमी के दिन सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान संधि पूजा होती है। यह पूजा देवी दुर्गा की महाकालिक स्वरूप की आराधना के लिए की जाती है। इस समय देवी को 108 दीप जलाकर और विभिन्न वस्तुओं से अर्पित करके विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
  2. महाप्रसाद: इस दिन भक्तों के लिए महाप्रसाद का आयोजन किया जाता है, जिसमें देवी को अर्पित भोग को भक्तों के बीच वितरित किया जाता है।
  3. राधा अष्टमी: इस दिन को राधा अष्टमी भी कहा जाता है। कुछ स्थानों पर इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा भी की जाती है।
  4. कन्या पूजा: अष्टमी के दिन कन्या पूजन की परंपरा है, जिसमें नौ कन्याओं का पूजन किया जाता है। इन्हें देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक माना जाता है। कन्याओं को नए कपड़े, मिठाई और अन्य उपहार दिए जाते हैं।
  5. धार्मिक अनुष्ठान: इस दिन विशेष रूप से मंत्रों का जाप, हवन, और अन्य धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं। भक्तगण विशेष रूप से ध्यान और साधना में लिप्त रहते हैं।
  6. उत्सव का माहौल: अष्टमी के दिन पंडालों में भीड़ बढ़ जाती है, लोग पारंपरिक परिधानों में सजकर पूजा में शामिल होते हैं। इस दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है, जिसमें नृत्य, संगीत, और नाटक शामिल होते हैं।

अष्टमी का दिन देवी दुर्गा की महिमा का गुणगान करने का दिन होता है, जब भक्त अपने हृदय में आस्था और श्रद्धा लेकर देवी के चरणों में उपस्थित होते हैं। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत की पुष्टि करता है और सभी के लिए खुशियों और समृद्धि की कामना करता है।

 

Navami (12 अक्टूबर 2024): अनुष्ठानों का अंतिम दिन

नवमी (12 अक्टूबर 2024): अनुष्ठानों का अंतिम दिन

नवमी, दुर्गा पूजा का अंतिम दिन है, जो विशेष रूप से देवी माँ की शक्तियों और आशीर्वाद के लिए समर्पित होता है। यह दिन अनुष्ठानों, पूजा, और धार्मिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण होता है, और भक्तगण देवी माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पूरी श्रद्धा के साथ भाग लेते हैं।Vijaya Dashami

प्रमुख विशेषताएँ:

  1. हवन और पूजा:
    • नवमी के दिन देवी माँ दुर्गा की विशेष पूजा और हवन किया जाता है। सभी भक्तगण पूजा में शामिल होकर मंत्रों का जाप करते हैं और देवी मां को भोग अर्पित करते हैं। इस दिन का हवन विशेष रूप से देवी शक्तियों की वृद्धि और बुराई का नाश करने के लिए किया जाता है।
  2. कन्या पूजा:
    • नवमी पर भी कन्या पूजा का विशेष महत्व है। भक्तगण नौ कन्याओं का देवी पूजन करते हैं, जो देवी दुर्गा के नौ रूपों का प्रतीक होती हैं। कन्याओं को नई वस्त्र, मिठाई, और उपहार देकर उनका सम्मान किया जाता है। इस पूजा को “कन्या भोज” भी कहा जाता है।
  3. महाप्रसाद वितरण:
    • इस दिन महाप्रसाद का वितरण भी किया जाता है। देवी माँ को अर्पित भोग भक्तों में बांटा जाता है, प्रसाद जो आस्था और भक्ति का प्रतीक होता है। भक्त इसे श्रद्धा पूर्वक ग्रहण करते हैं।
  4. सांस्कृतिक कार्यक्रम:
    • नवमी के अवसर पर पंडालों में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसमें संगीत, नृत्य, और नाटक शामिल होते हैं, जो भारतीय संस्कृति और परंपराओं को प्रदर्शित करते हैं।
  5. धार्मिक समर्पण:
    • इस दिन सभी भक्तगण अपनी आस्था और भक्ति को और भी गहरा करते हैं। लोग पारंपरिक वस्त्र पहनकर पूजा में शामिल होते हैं और देवी दुर्गा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।
  6. धन्य जीवन की प्रार्थना:
    • नवमी के दिन भक्तगण देवी से सुख, समृद्धि, और स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। यह दिन न केवल पूजा का अवसर है, बल्कि यह समर्पण और आस्था का प्रतीक भी है।

नवमी का दिन दुर्गा माँ पूजा महापर्व का अंतिम दिन होता है, जो भक्तों के लिए आस्था, समर्पण और खुशी का महापर्व लेकर आता है। इस दिन का आयोजन देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए किया जाता है, और यह सभी के लिए बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है।

 

Vijaya Dashami (14 अक्टूबर 2024): देवी की विदाई

 

विजयादशमी (14 अक्टूबर 2024): देवी की विदाई

विजयादशमी, जिसे दशहरा भी कहा जाता है, दुर्गा पूजा के समापन का दिन है और यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। यह दिन देवी दुर्गा की पूजा के बाद उनके विसर्जन का पर्व है, जो भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक अवसर होता है।Vijaya Dashami

विजयादशमी के प्रमुख विशेषताएँ:

  1. दिव्य विदाई:
    • विजयादशमी के दिन, देवी दुर्गा के मूर्तियों को जल में विसर्जित किया जाता है। यह प्रक्रिया भक्तों के लिए एक भावनात्मक क्षण होती है, क्योंकि वे देवी को विदाई देते हैं, उन्हें अगले वर्ष फिर से आने के लिए आमंत्रित करते हैं।
  2. अनुष्ठान और पूजा:
    • सुबह से ही भक्त पूजा-अर्चना में लिप्त होते हैं। विभिन्न अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसमें दुर्गा को धन्यवाद देने और उनके आशीर्वाद के लिए प्रार्थनाएँ शामिल होती हैं।
  3. कुश की पूजा:
    • इस दिन विशेष रूप से कुश (घास) की पूजा की जाती है, जो शक्ति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसे देवी दुर्गा के साथ जोड़ा जाता है और इसे घरों में लाकर पूजा की जाती है।
  4. धूमधाम से जश्न:
    • विजयादशमी के दिन विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम, जैसे नृत्य, संगीत, और नाटक आयोजित किए जाते हैं। लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर जश्न मनाते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं, और खुशियाँ साझा करते हैं।
  5. रावण दहन:
    • कई क्षेत्रों में इस दिन रावण दहन का आयोजन भी होता है, जिसमें रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है और रामायण की कथा को जीवंत करता है।
  6. संस्कृति और परंपरा:
    • विजयादशमी भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह परिवार और मित्रों के बीच एकता, सहयोग और प्रेम को बढ़ावा देता है। लोग नए कपड़े पहनकर, एक-दूसरे को बधाई देकर और त्योहार की खुशी में शामिल होकर इसे मनाते हैं।

निष्कर्ष

विजयादशमी केवल देवी दुर्गा की विदाई का दिन नहीं है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मकता, शक्ति और विजय का संदेश देता है। यह त्योहार हर वर्ष मनाया जाता है, और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बना रहता है। यह समाज को एकजुट करता है और सभी को एक नए सिरे से जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

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